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Showing posts from December, 2022

तुम हो

घासों पर ठहरी हुई पानी की बुंदों पर तुम्हारे चलने की आवाज़ सुनता हूँ पर तुम नहीं हो कहीं नहीं हो मगर ये दिल है जो कह रहा है तुम यहीं हो पानी की इन मासूम बूँदों मैं हो बसंत की रंगो में हो मेरे ख़यालों में हो तुम हो

एहसासों की परतें

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रंगीन बिखरे पत्ते हैं या मेरी एहसांसों की परतें ? वहम ही होगा शायद , मगर उनकी तस्वीर क्यों नज़र आती है ?

भीनी यादें

वो भीनी भीनी यादें पतझड़ के पत्तों जैसीं वक़्त के साथ और भी ख़ुशनुमा हो चलीं हैं

चिराग़

ऐसे चमकतीं हैं बेफिक्र रोशनियाँ तेरे दरबार में जैसे मेरे दिल में मेरी ख़्वाहिशों के चिराग़

रंगीन लाशें

गिरी बिछीं लाशें रंगीन पत्तों की कोई हमें भी रंग दे क़त्ल तो हमारा भी हुआ है

टूटा पत्ता

साख से टूटा हुआ पत्ता ही सही कुछ रंग तो बिखेर रहा हूँ   पानी की दो चार बूँदें क्या गिरीं किसी के आँखों में तो छा रहा हूँ।

ऐ ज़िंदगी

ऐ ज़िंदगी तू कभी मेरी थी मेरे घरवालों की थी मेरे पत्तों से भरे गार्डन की थी मेरे वीकेंड के बेफिक्र नींदों की थी पर अब तो तू कहीं खो गई है बस एक परछाई हो गई है

मैं हूँ

मैं हूँ मैं अपने ख़यालों की गहराइयों में हूँ मैं अपने अपनों की मधुर यादों में हूँ गुम हो गया अपने आप में , ग़र उनकी बातों से मुझे ढूँढ़ लेना , मुझ में , फिर से   क्यों की मैं हूँ

सुर और दिल

क्या सुनाऊँ मैं गीत, मेरे दोस्त पशोपेश   में पड़ा हूँ गले में आवाज़ है पर सुर नहीं दिल में सुर है पर आवाज़ नहीं

ज़िंदगी

मेरी साँसों के चलने को वो ज़िंदगी समझ बैठे ज़िंदा रहना ही शायद ज़िंदगी होगी उनके शहर में

खामोशी

अनकही सी बातें दिल के एक कोने में दफ़्न हैं वो पल जो जिये ही नहीं, वो भी पड़े हैं वहीं एक टीस, एक चुभन और ढेर सारी खोई हुई धड़कनें भी हैं  मेरी खामोशी से ये ना समझो, कि मेरे पास कुछ भी नहीं।