तुम हो
घासों पर ठहरी हुई पानी की बुंदों पर तुम्हारे चलने की आवाज़ सुनता हूँ पर तुम नहीं हो कहीं नहीं हो मगर ये दिल है जो कह रहा है तुम यहीं हो पानी की इन मासूम बूँदों मैं हो बसंत की रंगो में हो मेरे ख़यालों में हो तुम हो