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Showing posts from January, 2023
आईनों में ना ढूँढ़ते फिरो ख़ुद को मैंने तस्वीरों में पिरो रखा है तुमको तुम्हारे आईने के अक्सों में तो सिर्फ़ तुम्हारी अधूरी परछाइयों हैं मेरी आँखों से देखो ख़ुद को इनमें तुम्हारे वजूद कि गहराइयाँ हैं

मुस्कराहटें

तुम पर निसार होना तो थी मेरी मंज़िल शुक्र है , तुम्हारी मुस्कुराहटों ने रास्ता दिखा दिया

इंतज़ार

इन्तज़ार क्या है कौन है ये दर्द का सौदागर ? क्यों देता है ये , एक टीस , एक चुभन   क्या है , ये हज़ारों बेचैनियाँ का सफ़र ? या फिर , है ये , एक इम्तहान जिसके परे एक वादा है , मंज़िल - ए - सुकून - ए - दिल का , जहां है एक हमसफ़र , हमसफ़र , हमसफ़र।

सन्नाटे की ज़बान

कौन भला सन्नाटा फाँकता फिरे यहाँ सीख लिया पढ़ना हमने अब दूर के धड़कते दिलों की ज़बाँ सीधी ज़बानों में वो बात भी कहाँ

दोस्त

  मिल जाते हैं बहारों में और कभी ज़िंदगी की राहों में कुछ अजनबी से , कुछ पहचाने से कभी अनकहे से अफ़सानों से ज़िंदगी के इस सफ़र में चंद लम्हों के साथों ही   में दे जाते हैं मायने जैसे बंदिशों के बिस्तारों से

खामोशियों का शोर

  उनकी खामोशियों का शोर   उनकी खामोशियों का शोर   कुछ इस कदर आया , गहरा कि मेरे दिल की आवाज़ों ने कर लिया , ख़ुद ही पे पहरा

ठहरी हुई रोशनी

ठहरी हुई रोशनी है लकीरें तक बेजान हैं   चलो कहीं ऐसा भी तो है जो मुझसे भी वीरान है

टूटे फूटे ख़्वाबों से

टूटे फूटे ख़्वाबों से महफ़िलें सजाये रे ख़्वाब नहीं फूल लागे   - खट्टी मीठी यादों को सीने से लगाये रे याद नहीं प्रीत लागे …   नफ़रतों की दुनिया को सम - झ ना पाये रे ज़ुबान पे जो मोह माया नमक लगाये रे

क्यों?

क्यों करते हैं रोशनियाँ   हर बार बड़े शहरों में जब भूखे बच्चे रोते हैं कहीं दूर सुबहों और दोपहरों में क्यों गूंजती हैं आवाज़ें आतिश बाज़ियों की क्या कम पड़ गई है आवाज़ें बमों और चिथड़े फ़ौजियों की पृथ्वी ने सोचा ये क्यों होता है बस कुछ अरसों से   की तो है मैंने सूरज की परिक्रमा साढ़े चार अरब बरसों से